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ईश्वर / God एक स्थिति या भाव है, ‘जो नहीं है’। निर्वात् (Nothingness) यानि जो कुछ भी नहीं है, वही ‘ईश्वर’ है।
तो अगर आप पूछेंगे कि क्या ईश्वर है?.. तो कहा जा सकता है कि ‘हाँ’ और अगर आप पूछेंगे कि ईश्वर कैसा है?.. तो हम कहेंगे कि ‘जो नहीं है, वही ईश्वर है’। ईश्वर का तो ना रंग-रूप ही है, ना भाषा है और ना ही कोई गुण है।
इस भाव या स्थिति (ईश्वर) के मिटने के फलस्वरूप जो उत्पन्न होता है, वो अस्तित्व (Creation) / प्रकृति है।
ये पूरा ब्रह्माण्ड विपरीत के संतुलन पर टिका है; अर्थात् किसी भाव के फलस्वरूप जो क्रिया होती है, वही उस भाव के अन्त का कारण बनती है।
मातृत्व के भाव से ही एक स्त्री खुद को मिटाकर बच्चे को जन्म देती है। इसी तरह प्रेम के भाव से ही प्रेमी खुद को मिटाकर दूसरे को सुख देता है।
करुणा के भाव से दया उत्पन्न होती है और फलस्वरूप करुणा का नाश होता है; क्योंकि सामने वाले का उपकार हो चुका होता है।
अब आप समझ पायेंगे कि आपके मिटने पर ही ईश्वर का जन्म होगा; क्योंकि ईश्वर यानि निर्वात् / Nothingness की अवस्था के समाप्त होने पर ही आपका जन्म हुआ था।
आपके अंदर भी गहराई में कहीं सूक्ष्म सा निर्वात् है, जब आप उसे बढ़ाते हुए बाहर ले आते हैं; तब वह आपके पूरे अस्तित्व पर छा जाता है और आप मिट जाते हैं। परिणामस्वरूप जो ‘कुछ नहीं’ बचता है, वही ‘ईश्वर’ है।
तो सार यही है कि,
“ईश्वर है भी और ‘जो नहीं है’, वही ईश्वर है।”
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